सूत्र :समाख्याभावाच्च 4/2/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ब्राह्यण आदि के श्रुतियों, शास्त्रों और स्मृतियों से बिना माता-पिता के उत्पन्न हुए ऋषियों के नाम पाये जाते हैं और सृष्टि नियम के अनुसार कारागार (जेलखाना) के बनाने वाले स्वतन्त्र ही होते हैं और उसमें रहने के लिए परतन्त्र जाते हैं। इसी प्रकार सृष्टि के त्रम को आरम्भ करने के लिए जिसमें पूर्व सृष्टि के कर्मफल भोगने वाले जीव आकर जन्म ले उनके शरीरों के सांचे बनाने के लिए बिना कर्म के फल भोगने वाली सृष्टि के होने का अनुमान होता है। ये दो प्रमाण अयोनिज शरीरों के वास्ते मिलते हैं। इस पर और युक्ति देते हैं-