सूत्र :धर्मविशेषाच्च 4/2/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा की दी हुई चेष्टा सक ही परमाणुओं का संयोग होर पृथ्वी और वृक्षादि सब वस्तु बनते हैं। इालिए परमात्मा की दी हुई क्रिया से ही नियम के अनुसार परमाणु मिलकर देव ऋषियों के शरीर को उत्पन्न करते हैं। इसी नियम के अनुसार मच्छर आदि छोटे-छोटे जन्तुओं के शरीर भी बिना माता-पिता के उस चेष्टा और नियम से उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार स्वेदज अब भी बिना माता-पिता के उत्पन्न होते हैं। इसलिए कोई आक्षेप नहीं हो सकता।