सूत्र :अनियतदिग्देशपूर्वकत्वात् 4/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : परमाणु देश और दिशा से दिशा से गंधे हुए नहीं किन्तु प्रत्येक देश और दिशा में परमाणु विद्यमान हैं तो ईश्वर के नियम से चेष्टा पाकर मिल जाते हैं। पहले परमाणु से मिल कर द्वतणुक बनते हैं। और इसी प्रकार त्रम से मिलते हुए शरीर बन जाते हैं। इसमें उन जीवात्माओं के मुक्ति लौटे हुए होने के विशेष गुण के कारण से उनके शरीर बनने के लिए विशेष नियम है। क्योंकि प्रत्येक प्रकार के शरीर और उसमें जाने का नियम जीवात्मा की अवस्थाओं के अनुसार ही पृथक्-पृथक् है। इसी प्रकार मोक्ष जीवों को पुनः सृष्टि के लिए यह विशेष नियम है।
प्रश्न- परमाणु बिना क्रिया के मिल ही नहीं सकते, क्योंकि संयोग की उत्पत्ति कर्म से है और बिना संयोग के वस्तु उत्पन्न नहीं हो सकती?