सूत्र :तत्र शरीरं द्विविधं योनिजमयोनिजं च 4/2/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह शरीर दो प्रकार का होता है-एक योनिज अर्थात् माता के सम्बन्ध से उत्पन्न होने वाला, दूसरा अयोनिज अर्थात् बिना माता-पिता के सम्बन्ध से होने वाला है। अयोनिज शरीर सृष्टि की आदि में, बिना माता-पिता के, ऋषियों का होता है जो मुक्ति से लौटे हुए होने के कारण किसी कर्म का फल भोग न होने से कवल नये कर्म करने के लिए युवावस्था में होता है, में होता है, इसको कत्र्तव्य योनि अर्थात् केवल भोग के लिए करने योग्य शरीर कहते हैं। योनि अर्थात् मात-पिता के संयोग से उत्पन्न होने वाले शरीर दो प्रकार के होते हैं। एक जरायुज अर्थात् मनुष्य और पशु आदि जो जरायुः से उत्पन्न होने हैं, दूसरे अण्डज अर्थात् अण्डे से उत्पन्न होने वाले पक्षी सूर्य आदि के शरीर।
व्याख्या :
प्रश्न- अयोनिज शरीर का होना सम्भव नहीं प्रतीत होता क्योंकि यह सृष्टि में दृष्टान्त दिया हुआ है, इसलिए देव ऋषियों की उत्पत्ति को बिना माता-पिता के सिद्ध करने के लिए दृष्टांत की रीति पर स्वेदज अर्थात् मैल से उत्पन्न होने वाले न्तु विद्यमान हैं।
प्रश्न- बना शरीर के उत्पन्न होने का कारण क्या है क्योंकि बिना कारण के कोई नहीं हो सकता?