DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :अणुसंयोगस्त्वप्रतिषिद्धः 4/2/4
सूत्र संख्या :4

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पूर्व सूत्र में जो अग्नि जल आदि पंचभूतों से शरीर न बनने का खण्डन किया गया है अर्थात् यह बतलाया गया है कि दूसरी जाति के परमाणु किसी वस्तु के समावाय कारण नहीं होते, परन्तु परमात्मा के नियम से पंचभूतों के परमाणुओं के संयोग का निषेध नहीं किया गया था। इसलिए उनके संयोग से भोजन आदि पचता है, और रूप आदि का होना भी बतलाया गया है। परन्तु यदि कोई यह प्रश्न करे कि शरीर का सबसे प्रथम उपादान कारण कौन-सा हैं? तो उसका उत्तर यह होगा कि अधिकतया मट्टी से बना है, क्योंकि शरीर में उसके गुण अधिकता से पाये जाते हैं। गन्ध मट्टी का स्वाभाविक गुण है। वह शरीर के नाश होने तक मत शरीर में भी पाया जाता है, और भोजन का पचना आदि मृत शरीर में नहीं पाये जाते इसलिए शेष गुण नैमित्तिक हैं और गन्ध गुण स्वाभाविक है गन्ध के स्वाभाविक गुण होने से शरीर का पार्थिव होना सिद्ध है। अब शरीर के प्रकार वर्णन करते हैं-

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