सूत्र :गुणान्तराप्रादुर्भावाच्च न त्र्यात्मकम् 4/2/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि मट्टी, पानी और आग के मिलने से यह शरीर बनता, तो पानी के गुण सरदी और बहना, अग्नि का गुण गरमी और प्रकाश इसमें पाया जाता, परन्तु ऐसा नहीं पाया जाता किन्तु आत्मा से शून्य शरीर में गन्ध की अधिकता प्रतीत होने से विदित होता है कि वह शरीर पार्थिव है।
व्याख्या :
प्रश्न- शरीर में गरमी और रूप के होने से आग का होना और सरदी और संयोग के पाये जाने से जल होना पाया जाता है।
उत्तर- शरीर में नैमित्तिक है, और प्राण वायु अर्थात् अग्नि से मिली हुई वायु के उसमें रहने से प्रतीत होती है। और मुर्दा शरीर में गरमी नहीं पायी जाती। ऐसे ही गरमी और सरदी भी भोजन और जल के कारण जो खाया पिया जाता है प्रतीत होती है। वास्तव में शरीर पार्थिव है उसका स्वाभाविक गुण गन्ध है और शेष नैमित्तिक है। यहाँ पपर तात्पर्य कणादी का यह है कि समवाय सम्बन्ध से शरीर का कारण मट्टी है।
प्रश्न- यदि यह शरीर पांच भूत या तीन भूतों अर्थात् मट्टी, पानी और अग्नि आदि से नहीं बना तो उसमें भोजन पचाने को शक्ति जो अग्नि है और रूप आदि उसमें क्यों पाये जाते है? उन गुणों के होने से शरीर का पांच भौतिक होना पाया जाता है?