सूत्र :प्रत्यक्षा-प्रत्यक्षाणां संयोगस्याप्रत्यक्षत्वात्पञ्चात्मकं न विद्यते 4/2/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर आदि को पांचों भूतों का कार्य कहना ठोक नहीं क्योंकि प्रत्यक्ष होने योग्य पृथ्वी और अग्नि का न प्रत्यक्ष होने योग्य वायु और आकाश से मिल जाना प्रत्यक्ष से सिद्ध नहीं होता। यदि पांच भूतों से शरीर का बनना सिद्ध होतो वायु और और आकाश से बना हुआ शरीर; जो प्रत्यक्ष योग्य नहीं, पानी और अग्नि से मिलकर बनता हैं। या तो बिल्कुल प्रत्यक्ष न होता या कुछ प्रत्यक्ष होता वाकुछ न होता। इसलिए पांच भूतों से बना हुआ शरीर नहीं।
प्रश्न- तो क्या तीन भूतों से तो होने योग्य है, यह शरीर बनता है अर्थात् मट्टी, जल और अग्नि से उत्पन्न हुआ है?