DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :तत्पुनः पृथिव्यादिकार्यद्रव्यं त्रिविधं शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञकम् 4/2/1
सूत्र संख्या :1

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : अर्थ- पृथ्वी आदि क कार्य तीन प्रकार के होते हैं, एक शरीर, दूसरें इन्द्रिय और तीसरे विषय जो भोगे जाते हैं।

व्याख्या :
प्रश्न- शरीर किसे कहते हैं? उत्तर- भोग करने के लिए जीवात्मा को जो बतौर मकान के मिलता है वा जिसमें रहकर इन्द्रियों के विषयों के साथ जीवात्मा का सम्बन्ध होता है वह शरीर है। यह शरीर तीन प्रकार का है एक कत्र्तव्य योनि, जिसमें रहकर जीवात्मा किसी पूर्व कर्म का फल नहीं भोगता किन्तु भोग के लिए करता है। दूसरे कत्र्तव्य और भोक्त-व्ययोनि, जिसमें रहकर जीवात्मा पहले कर्मों का पाप व पुण्य भोगता है और आगे के लिए कर्म करता है। तीसरे भोक्त व्ययोनि, जिसमें रहकर केवल पिछले कर्मों की बूरी वासना वा बुरे सस्कारों को भुलाने के लिए उसके स्वतन्त्र न होने से केवल फल ही भोगता है- आगे के लिए स्वतन्त्रता से कर्म नहीं करता। इन्द्रिय जो जीवात्मा के कर्म करने और फल भोगने के लिए साधन हैं जिनसे कर्म करता है और फल भोगता है। और विषय वह है तो इन इन्द्रियों से प्राप्त किये जाते हैं जिसको जीवात्मा अपने अनुकूल या प्रतिकूल मानकर सुख दुःख का अनुभव करता है। आशय यह है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के कार्य तीन प्रकार के होते हैं। प्रश्न- एक तत्व अर्थात् पृथ्वी आदि से शरीर की उत्पत्ति मानना ठीक नहीं किन्तु पंचभूतों से बना हुआ है?

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: