सूत्र :संख्याः परिमाणानि पृथक्त्वं संयोगविभागौ परत्वापरत्वे कर्म च रूपिद्रव्यसमवायाच्चाक्षुषाणि 4/1/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संख्या और परिमाण, पृथक्त्व, मिलना, अलग होना, परे होना, वरे होना ये सावयव पदार्थों में होने से आंख से देखने योग्य है। आशय यह है कि इन गुणों का आंख से प्रत्यक्ष हो सकता है। जैसे पांच मनुष्य खड़े हैं तो उनकी संख्या का ज्ञान हमको आंख से होता है। किसी चीज से कोई छोटी या बड़ी है, इस छोटाई बड़ाई का ज्ञान भी आंख से हो जाता है। यदि बहत-सी वस्तुओं से कोई वस्तु पृथक् है तो उसकी पृथकता को भी हम आंख से देख सकते हैं। कोई वस्तु जब किसी वस्तु से मिलती है या अलग होती है। तो उसके मिलने या अलग होने को हम आंख से देख सकते हैं। यह इससे वरे है, इसका ज्ञान भी आंख से हो जाता है। परन्तु यह ध्यान रहे और जहां काल कृत होता वहां पर आंख से ज्ञान नहीं होगा। इन सब गुणों और भी सत्रिय वस्तु को क्रिया करते हुए देखकर, आंख से हो जाता है। आंख के अतिरिक्त इन बातों का ज्ञान त्वचा से भी होता है। यद्यपि सूत्र में त्वचा शब्द, परन्तु क्रम से सिद्ध होता है कि पहले पांच गुण तो एक इन्द्रिय से अनुभव होने वाल थे और ये गुण दो इन्द्रियों अर्थात् त्वचा आंख से प्रतीत होते हैं।
प्रश्न- क्या प्रत्येक वस्तु की संख्या आदि का ज्ञान आंख से हो जाता है? या केवल रूप वाली वस्तु काद्य