सूत्र :तेन रसगन्धस्पर्शेषु ज्ञानं व्याख्यातम् 4/1/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार अनेक परमाणुओं के मिलने की अवस्था में और उनमें रूपविशेष अर्थात् जिस द्रव्य में रूप है उसके परमाणु होने पर रूप का प्रत्यक्ष होता है। इसी प्रकार रस, गन्ध स्पर्श का भी ज्ञान समझना चाहिए। जिस प्रकार आंख से रूप का प्रत्यक्ष होताता है। इसी प्रकार जिह्ना से रस का प्रत्यक्ष होता है। परन्तु जब तक द्रव्य संयुक्त न हो और उसमें जल के परमाणु न हों तब तक उसके रस का ज्ञान नहीं हो सकता। गन्ध का प्रत्यक्ष करने वाली इन्द्रिय नाक है। गन्ध को वह तब ही प्रत्यक्ष कर सकती है जबकि वस्तु अनेक द्रव्यों से संयुक्त हो जावे, और उसमें मट्टी के परमाणु विद्यमान हों। जहां मट्टी के परमाणु न होंगे और असंयुक्त परमाणु होंगे वहां गन्ध का ज्ञान नहीं होगा। ऐसे ही स्पर्श का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जब तक परमाणु संयुक्त न हों उसमें वायु के परमाणु सम्मिलित न हों तक उसका स्पर्श प्रत्यक्ष नहीं हो सकता।
व्याख्या :
प्रश्न- पत्थर बहुत परमाणुओं से संयुक्त है, और उसमें मट्टी के परमाणु भी मिले हैं, परन्तु उसमें गन्ध का प्रत्यक्ष नहीं होता इसलिए यह नियम ठीक नहीं कि संयुक्त रूप विशेष वाली वस्तु का ही प्रत्यक्ष ज्ञान होता है?
उत्तर- पत्थर में गन्ध है। परन्तु उसका ज्ञान इसलिए नहीं होता कि पत्थर के अवयव इस प्रकार ठोस हैं कि उसमें पृथ्वी की अधिकता से आकुंचन अर्थात् सिकुड.ने की शक्ति अधिक है जिसके कारण मट्टी का परमाणु बाहर की ओ उड़ने के स्थान में भीतर की ओर खिचा हुआ है और जब तक मट्टी के परमाणु को नाक को नाक तक न ले जावे तब तक उसके गन्ध का ज्ञान नहीं होता। इसलिए पत्थर को जलाओगे तो उस ठोसपन के दूर होने से गन्ध का गुण अवश्य ही प्रत्यक्ष होगा।
प्रश्न- यदि गुणों का प्रत्यक्ष होना अनेक द्रव्यों के मिलने और उनमें विशेषकर उस गुण वाले परमाणु के होने की अवस्था में ही माना जावे तो गुरूत्व (वनज) जो गुण है हौर जिस वस्तु में रूप रहता है उसमें गुरूत्व भी रहता है, गुरूत्व का प्रत्यक्ष न होने से इस नियम में व्यभिचार भी प्रतीत होता है अर्थात् किस गुण का प्रत्यक्ष होता है किसका नहीं।