सूत्र :अनेकद्रव्यसमवायाद्रूपविशेषाच्च रूपोपलब्धिः 4/1/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूप का ज्ञान अर्थात् देखना अनेक द्रव्य अर्थात् बहुत परमाणुओं के मिलने से, और उनमें रूप विशेष अर्थात् अग्नि के परमाणुओं की विद्यमानता से होता है, क्योंकि यदि एव परमाणु में जो रूप है उसको देख सकते हैं तो और वस्तुओं के परमाणु चाहे दृष्टिगत होते या न होते किन्तु अग्नि परमाणु जिनका विशेषकर गुण रूप है, अवश्य दृष्टिगत होते। यहद अनेक परमाणुओं के संयोग के से ही रूप का देखना सम्म्भव होता तो वायु परमाणुओं के संयोग से वह परमाणुओं का समूह है। इसलिए आचार्य ने बतलाया कि देखना वस्तु को दो बातों पर ही निर्भर है एक परमाणुओं का मिला हुआ होना, दूसरे उसमें रूप विशेष अर्थात् अग्नि के परमाणुओं का होना। यदि इन दोनों में से कोई बात न हो तो दीखना सम्भव ही नहीं। इसलिए परमाणुओं में संयोग नहीं किन्तु वायु में अग्नि के परमाणु ही नहीं।
व्याख्या :
प्रश्न- छ्यणुक भी नहीं दीखता किन्तु यह भी एक से अधिक परमाणुओं के संयोग से बना है और अग्नि के छ्यणुक में रूप विशेष भी है।
उत्तर- अनेक शब्द से तात्पर्य एक से अधिक नहीं होना चाहिए किन्तु आचार्य का तात्पर्य बहुत से परमाणुओं के संयोग से है।