सूत्र :सत्यपि द्रव्यत्वे महत्त्वे रूपसंस्काराभावाद्वायोरनुपलब्धिः 4/1/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि वायु द्रव्य है, और अनेक परमाणु रूप द्रव्यों के संयोग से उत्पन्न होने वाली होने से बड़ापन भी उसमें विद्यमान है, तो भी रूप का संस्कार न होने से वायु में रूप का ज्ञान नहीं होता, आचार्य ने जो रूप का संस्कार न होना लिखा है, उसका आश्य यह है कि स्थूल के गुण सूक्ष्म में नहीं आते। रूप तेज का गुण है और वायु अग्नि से सूक्ष्म है, इसलिए अग्नि का गुण रूप वायु में नहीं आ सके क्योंकि यह गुण उस वायु से स्थूल का है।
व्याख्या :
प्रश्न- इसमें क्या प्रमाण है कि वायु अग्नि से सूक्ष्म है? बुद्धि से तो यह सिद्ध होता है कि अग्नि वायु से सूक्ष्म है।
उत्तर- अग्नि में दो गुण रूप और स्पर्श पाये जाते हैं, और वायु में केवल स्पर्श गुण ही पाया जाता है, और रूप नहीं पाया जाता। इससे स्पष्ट है कि अग्नि से वायु सूक्ष्म है, क्योंकि वायु का गुण स्पर्श तो अग्नि में पाया जाता है परन्तु अग्नि का गुण रूप वायु में नहीं पाया जाता है, श्रुति भी सूक्ष्म के उपरान्त स्थूल की उत्पत्ति का क्रम बतला कर इस बात को प्रकट कर दिया है कि सबसे सूक्ष्म आत्मा है। उससे स्थूल आकाश उससे स्थूल वायु, उससे स्थूल अग्नि, उससे स्थूल जल और उससे स्थूल मट्टी है।
प्रश्न- श्रुति में तो इसका कारण कार्य भाव बतलाया है।
उत्तर- कारण कार्य से सूक्ष्म होता है, इसलिए कारण कहने से भी तात्पर्य सूक्ष्म का ही समझना चाहिए। क्योंकि बिना कारण के पदाथ्ज्र्ञ की उत्पत्ति असम्भव है।