DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :अविद्या 4/1/5
सूत्र संख्या :5

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जो लोग सारे पदार्थों को अनित्य मानते हैं वे परमाणुओं को भी अनित्य मानते हैं, और उनके अनित्य होने में हेतु यह देते हैं कि परमाणु रूप, रस गन्ध और स्पर्श वाले हैं। इसलिए अनित्य हैं। दूसरे, परमाणु की कुछ न कुछ मूर्ति है, और प्रत्येक और से दूसरे परमाणुओं के साथ मिलाप होने से परमाणु के मध्य में आकाश होना परमाणु सावयव है। इसका उत्तर जी देते हैं कि यह अविद्या है वास्तव में परमाणु नित्य ही है।

व्याख्या :
प्रश्न- परमाणु के भीतर आकाश है वा नहीं? उत्तर- परमाणु के लिए भीतर बाहर का शब्द ही नहीं आ सकता, क्योंकि उस शब्द ही के अर्थ परमाणु हैं जहां भीतर बाहर न हो। जहां भीतर बाहर होगा वह परमाणुही नहीं होगा। और परमाणु के भीतर आकाश कैसे हो सकता है, क्योंकि आकाश में परमाणु है आकाश कहते हैं पोल को। जिस जगह परमाणु है वहां आकाश नहीं क्योंकि वह स्थान परमाणुओं में घेर लिया है। प्रश्न- यदि परमाणु के भीतर आकाश न माना जावेगा तो आकाश सर्व-व्यापक नहीं रहेगा? उत्तर- निरवयव परमाणु के भीतर न होने से आकाश की सर्वव्यापकता में अन्तर नहींआ सकता, और आकाश जब कि पूर्व में विद्यमान था जहां अब परमाणु है तो किस प्रकार कह सकते हैं कि आकाश सर्वव्यापक नहीं। इसलिये जितने हेतु परमाणुओं के अनित्य होने में दिए जाते हैं वह सब अविद्या है। प्रश्न- यदि परमाणु है तो उसका प्रत्यक्ष क्यों नहीं होता?

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: