सूत्र :महत्यनेकद्रव्यवत्त्वा-द्रूपाच्चोपलब्धिः 4/1/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्यक्ष उन वस्तुओं का होता है जिनका परिमाण महत्-बड़ा हो, मध्यम परिमाण वाली हों। क्योंकि न तो सबसे सूक्ष्म पदार्थ का प्रत्यक्ष होता है जैसे परमाणु, और न सर्वव्यापक का प्रत्यक्ष होता है जैसे आकाश और परमात्मा। इसके अतिरिक्त एक द्रव्य का भी प्रत्यक्ष नहीं होता किन्तु सावयव का प्रत्यक्ष हो सकता है, परन्तु वायु सावयव और महान् होने पर भी दृष्टिगत नहीं होती, इसलिए बतलाया कि रूप विद्यमान हो उसकी आंख देख सकती है। जबकि वायु रूप नहीं इसलिए आंख नहीं देख समती। परमाणु जबकि महत् परिमाण वाला नहीं और सावयव है किन्तु एक द्रव्य निरवयव है और प्रत्यक्ष अनेक द्रव्य वाले=सावयव का हो सकता है। इसलिए प्रत्येक प्रकार के गुण रखने वाले परमाणुको भी नहीं देख सकते।
व्याख्या :
प्रश्न- जो गुण कारण में होते हैं वही कार्य में भी होते हैं। जब कि परमाणुओं से बने हुए कार्य द्रव्यों में महत्त्व=बड़ापन पाया जाता है तो उस द्रव्य के कारण परमाणुओं में भी अवश्य होगा। इस प्रकार जब परमाणुओं में बड़ापन है तो परमाणु का अवश्य प्रत्यक्ष होना चाहिए।
उत्तर- गुण तीन प्रकार के होते हैं-स्वाभाविक नैमित्तिक, औा औपाधिक। स्वाभाविक गुण कारण से कार्य में आया करता है। नैमित्ति गुण या तो संयोग से उत्पन्न होते हैं या किसी दूसरे सूक्ष्म द्रव्य से उसमें आ जाते हैं। जैसे पानी में सरदी उसके कारण परमाणुओं से आती है जो उसका स्वाभाविक गुण है, परन्तु गरमी अग्नि का उसमें प्रवेश कर जाने से है जो नैमित्तिक गुण है। जहां नीचे लाल रंग का डांक लगा दो और ऊपर श्वेत नगीना लगा दो, वहाँ पर लाली औपाधिक होती है। जो लाल डांक के कारण प्रतीत होती है। अब विचारना चाहिए कि बड़ापन संयोग से उत्पन्न हुआ है या स्वाभाविक गुण है? यहां बड़ापन नैमित्त्कि गुण है जो अनेक द्रव्यों के मिलने से उत्पन्न होता है, इसलिए परमाणु के एक द्रव्य होने से उसमें नहीं, अतः परमाणु का प्रत्यक्ष भी नहीं हो सकता।