सूत्र :अनित्य इति विशेषतः प्रतिषेधभावः 4/1/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो वस्तु सावयव है वह संयुक्त होने के पूर्व न होने से, और जिन पदार्थों से वह संयुक्त हुई है। उसकी सत्ता के बिना उसकी सत्ता न होने से नित्य नहीं किन्तु प्रत्येक वस्तु जो सावयव है अनित्य है। जो लोण सारी वस्तुओं को अनित्य कहते हैं यह ठीक नहीं है, क्योंकि अनित्य कहने से विशेष कर सावयव पदार्थों का अनित्य बताया है। सबका अनित्य होना नहीं, इसलिए सावयव पदार्थ अनित्य और निरवयव पदार्थ नित्य होता है। जगत के उपादान कारण परमाणु असंयुक्त है। इसलिए नित्य है। जहां जगत् को अनित्य बताया है वहां जगत् से आशय उत्पन्न होने वाली वस्तु से है। नित्य परमाणु को अनित्य नहीं कहा।
प्रश्न- बहुत से लोग तो सारे ही पदार्थ को अनित्य मानते हैं?