सूत्र :तस्य कार्यं लिङ्गम् 4/1/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कारण जो नित्य है उसका लिंग कार्य है। कार्य ही से कारण का अनुमान किया जाता है, जैसे घड़े को देखकर उसके कारण पार्थिव परमाणुओं का अनुमान होता है। यदि मिट्टी के परमाणु पार्थिव नहीं होते तो उनका कार्य घड़ा कैसे बन सकता है? इसलिए परमाणु, जोकि अनित्य द्रव्य के उपादान कारण हैं, उससे और कार्य से अवयवी और अवयव का सम्बन्ध होता है, घड़ा अवयवी है, और जिन परमाणुओं से वह बना हैं वे उसके अवयव है। इस अवयव अवयवी के सम्बन्ध से यह भी पता चलता है कि प्रत्येक कार्य के परमाणुओं की संख्या नियत है। छोटी वस्तु में थोड़े परमाणु और बड़ी वस्तु में अधिक परमाणु होते हैं।
व्याख्या :
प्रश्न- प्रत्येक वस्तु में अनन्त परमाणु होते हैं, इसलिये उनकी गिनती और अन्त नहीं हो सकता।
उत्तर- यदि प्रत्येक कार्य में अनन्त परमाणु मान लिये जावें तो हिमालय पर्वत और सरसों के दानें में कोई अन्तर ही नहीं रहेगा क्योंकि दोनों ही अनन्त परमाणुओं का समूह है इसलिए परमाणुओं की संख्या अर्थात् अन्त मानना पड़ेगा।
प्रश्न- परमाणुओं का होना ही सम्भव है, क्योंकि जब दो परमाणु आपस में मिलेंगे तो वे दोनों एक-दूसरे में समा जायेंगे या एक ओर से मिलेंगे? यदि एक ओर से मिलेंगे तो विभाग होना सिद्ध होगा, क्योंकि दोनों पाश्वों में कुछ अन्तर न होगा? यदि सारे के सारे एक-दूसरे में समा जायेंगे तो यह होना असम्भव है।?
उत्तर- परमाणु दूसरें के साथ एक ओर से लिमे हैं परन्तु दो पाश्र्व होने से विभाग सिद्ध नहीं होमा किन्तु बीच में आकाश होने से विभाग उत्पन्न होता है। परमाणुओं पाश्र्वों में आकाश नहीं इसलिए विभाग सम्भव नहीं।
प्रश्न- परमाणुओं का होना असम्भव है, क्योंकि परमाणुओं से यदि एक रेखा बनाई जावे, और रेखा गणित के नियम के अनुसार उसको विभक्त करना हो तो या तो विभाग असम्भव होगा या साढ़े चार पर विभक्त होने से परमाणु में विभाग हो गया।
उत्तर- सृष्टि उत्पन्न होने का क्रम यह है कि प्रथम ही प्रथम परमाणुओं से छय्णुक बनते हैं और छय्णुक त्रसेरणु आदि होते हुए सृष्टि उत्पन्न होती है। सीधे परमाणुओं से सृष्टि नहीं बनती, इसलिए विषम परमाणुओं से कोई रेखा बन ही नहीं सकती, क्योंकि वह सृष्टि नियम के विरूद्ध है।