सूत्र :सदकारणवन्नित्यम् 4/1/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रश्न- नित्य किसको कहते हैं?
सदकारणन्नित्यम् ।1।
अर्थ- जो वस्तु विद्यमान हो परन्तु अपनी सत्ता के लिए किसी दूसरें कारण की आवश्यकता न रखती हो। वह नित्य है। सत् शब्द के अर्थ हैं तीनों कालों में रहने वाला और कारण की आवश्यकता न रखे वह नित्य कहाता है। उसके विरूद्ध जो किसी काल में हो और किसी काल में न हो, जो अपनी सत्ता के लिए कारण की आवश्यकता रखता हो वह अनित्य है। जो वस्तु उत्पत्ति रहित है वह नित्य है, और जो उत्पन्न हुई वह अनित्य है, इसलिए प्रत्येक वस्तु का जो कार्य है, उसका नित्य होगा; क्योंकि सम्पूर्ण अनित्य पदार्थ जिसकी अपेक्षा रखते होगे, वह उससे भिन्न होगा अर्थात् नित्य होगा। इसलिए सृष्टि के उपादान कारण प्रकृति और निमित्त कारण सृष्टा को नित्य माना चाहिए।
व्याख्या :
प्रश्न- एक कत्र्ता को ही नित्य मानना चाहिए दूसरे को नित्य मानने की आवश्यकता नहीं।
उत्तर- कारण के गुण के अनुसार ही कार्य में गुण होते हैं। यदि एक ही नित्य पदार्थ माना जावे तो सम्पूण सृष्टि उसके गुणों के समान गुण रखने वाली होनी चाहिए। जितने आभूषण सुवर्ण के होंगे उन सब में सुवर्ण के गुण पाये जावेंगे। इसी प्रकार यदि एक कत्र्ता के अतिरिक्त उपादान कारण प्रकृति आदि को नित्य मानाजावे तो सम्पूर्ण जगत् में परमेश्वर के गुण पाए जाने चाहिए, कोई विरूद्ध गुण होना ही नहीं चाहिए, क्योंकि एक वस्तु, में दो विरूद्ध गुण रह नहीं सकते। परन्तु देखने से नितान्त इसके विरूद्ध पाया जाता है, इसलिए कत्र्ता अतिरिक्त प्रकृति आदि को भी नित्य माना जावे यही ठीक है।
प्रश्न- अभाव से भाव की उत्पत्ति करना ही कत्र्ता का गुण है, और यही कर्तृत्व है इसलिए कत्र्ता बिना उपादान कारण प्रकृति के भी, संसार को उत्पन्न कर सकता है।
उत्तर- यदि अभाव से भाव की उत्पत्ति सम्भव है, तो संसार में अभाव से भावोत्पत्ति का दृष्टान्त मिलना चाहिए। द्वितिय, किसी रोग की चिकित्सा ही नहीं होनी चाहिए, क्योंकि प्रत्येक रोग का कारण अभाव हो सकता है। जो रोग किसी कारण से उत्पन्न हो तब तो उसके विरोधी से उसकी चिकित्सा हो सकती है। जब कोई कारण ही नहीं तो चिकित्सा किस प्रकार होगी? जब सारे रोगों का कारण अभाव ही है तो उसकी चिकित्सा किससे की जावे? कारण से कार्य की उत्पत्ति के तो सारे उदाहरण मिलते हैं परन्तु अभाव से भाव की उत्पत्ति का एक भी उदाहण नहीं मिलता। इसलिए नित्य पदार्थ प्रकृति से ही परमात्मा सारे कार्य उत्पन्न करता है।