सूत्र :शास्त्रसामर्थ्याच्च इति द्वितीय आह्निकः इति तृतीयोऽध्यायः3/2/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वेद के उपदेश से भी आत्मा का अनेक होना सिद्ध होता है जैसे ‘‘द्वासुपर्णसयुजा सखायाः वृक्षे समानं वृक्षे परिषस्व जाते’’ इत्यादि। इसी प्रकार के और बहुत से वाक्यों से सिद्ध होता है कि सुख-दुःख के भेद से आत्मा माना है। पहिला स्वाभाविक सुख स्वरूप है और दूसरा नैमित्तिक सुख ग्रहण करने वाला है अर्थात् एक परमात्मा और दूसरा जीवात्मा है। यहां तक पता लगाया जावे तो सिद्ध होता है कि जीव ब्रह्य का भेद हैं ब्रह्य स्वरूप से विभ होने से आत्मा कहाता है। और जीव जाति से विभु होने से आत्मा कहाता है। फिर जीवों में दो भेद हैं- एक बुद्धजीव, दूसरे मुक्त जीव जिनको नवीन वेदान्ती जीव और ईश्वर बतलाते।
वैशेषिक दर्शन के भाषानुवाद का तृतीयाध्याय समाप्त हुआ