सूत्र :सुखदुःखज्ञाननिष्पत्त्य- विशेषादैकात्म्यम् 3/2/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सुख-दुःख और ज्ञान का होना भिन्न-भिन्न शरीर में सामान्यता पाया जाता है, और किसी प्रकार की विशेषता प्रतीत नहीं होती, इससे सिद्ध होता है कि आत्मा एक ही है। जिस प्रकार असंख्य घड़ों में रहने वाला पानी एक ही होता है, क्योंकि उसमें पानी के गुण सामान्यतया पाये जाते हैं, ऐसे ही असंख्य शरीरों में आत्मा एक ही है। क्योंकि आत्मा के गुण सामान्यतया पाये जाते हैं। जैसे आकाश काल और दिशा का लिंग विशेषता से रहित होने से, उनको एक ही मानना पड़ता है, उनके भेद केवल उपाधि से माने जाते हैं, ऐसे ही आत्मा भी एक ही है। उसके लिगंन सुख-दुःख और ज्ञान में भेद उत्पन्न करने वाली कोई विशेषता नहीं पाई जाती इस पूर्व का उत्तर अगले सूत्र में देते हैं।