सूत्र :देवदत्तो गच्छति यज्ञदत्तो गच्छतीत्युपचाराच्छरीरे प्रत्ययः 3/2/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : देवदत्त जाता है, यज्ञदत्त जाता है, इस जगह शरीर में जो आत्मा के संयोग से गति है उपचार से आत्मा में माना गया है यदि केवल शरीर में जाने की क्रिया सम्भव होती तो मृत शरीर भी क्रिया करता, इसलिए शरीर में जाने का ज्ञान उपचार से होता है।
व्याख्या :
प्रश्न- उपचार किसको कहते हैं ?
उत्तर- उपचार उसको कहते हैं कि जहां सम्बन्ध के कारण एक का गुण दूसरे में होना प्रतीत किया जावे वा वर्णन किया जावे जैसे कहते हैं कि मंचान पुकारते हैं अब मंचान में तो बोलने की शक्ति है नहीं, उसका पुकारना कैसे सम्भव हो सकता है? यहाँ पर मंचान पर बैठे हुए मनुष्यों के पुकारने के सम्बन्ध से मंचान का पुकारना कहा गया है। और जिस प्रकार कहा जाता है कि ‘‘आगरा आ गया’’परन्तु आने की क्रिया आगरे में नहीं हुई, किन्तु हम आगरे में पहुंच गये हैं इसी को उपचार कहते हैं। आशय यह है कि जिस समय लक्षण से अर्थ के जानने की आवश्यकता हो सकती है (अर्थ का ज्ञान न हो) वहां उपचार से विचार कर लेना चाहिए। इसकी अधिक व्याख्या न्यायदर्शन में आ चुकी है।
प्रश्न- लक्षण किसको कहते हैं।
उत्तर- जहां शब्दों के मुख्य अर्थों को छोड़कर वक्ता के अभिप्राय के अनुसार अर्थ लिए जावें उसका लक्षण कहते हैं।
प्रश्न- मुख्य अर्थों को छोड़कर दूसरे अर्थों का ग्रहण करना किन-किन अवस्थाओं में होता है?
उत्तर- उसमें रहने से, जिसका अभिप्राय यह है कि मंचान पर बैठने से। यहां मंचान नहीं पुकारते किन्तु उस स्थान पर (मंचान पर) रहने वाले पुकारते हैं। इसी प्रकार शरीर में रहने की क्रिया को शरीर में कह सकते हैं उसके समान धर्म वाला होने से उसके समीप होने से, उसके साथ सम्बन्ध होने और वैसे ही अर्थ होने से। समान धर्म वाला होने का दृष्टान्त यह है कि जैसे कहा जाता है कि यह मनुष्य तो ‘‘सिंह’’ है अर्थात् सिंह के समान वीर हैं समीप होने का उदाहरण-जैसे ‘‘गंगा में घोष’’ है आशय यह है कि गंगा के किनारे घोष (अहीरों को ग्राम) है। सम्बन्ध का उदाहरण जैो दण्ड के संयोग से सन्यासी को ‘‘दण्डी’’ कहतें है। इस पर पूर्व पक्षी कहता है कि-