सूत्र :दृष्ट आत्मनि लिङ्गे एक एव दृढत्वात्प्रत्यक्षवत्प्रत्ययः 3/2/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इसी प्रकार परमात्मा को जान लेने पर भी उसका निश्चय ज्ञान होने के लिए अनुमान की आवश्यकता है, जिससे वह ज्ञान सन्देह से रहित और निश्यात्मक हो जावे। जिस प्रकार दूर से सरोवर को देखकर पानी होने का ज्ञान हो जाता है किन्तु उसमें सन्देह रहता है कि यह मृगतृष्ण का जल है वा वास्तव में जल ही है, इसलिए बगुले आदि पक्षियों को वहां पर उड़ता देखकर अनुमान से निश्चित सिद्धान्त ठहराते हैं कि यह सरोवर ही है, क्योंकि असन्दिग्ध ज्ञान होना ही उसका निश्चित होना है। इसलिए प्रत्यक्ष पर भी उस ज्ञान को अनुमान से पुष्ट करना ठीक ही है?
प्रश्न- देवदत्त जाता है, इस प्रकार के व्यवहार से देवदत्त में चलना आदि विदित होते हैं?