DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :यज्ञदत्त इति संनिकर्षे प्रत्यक्षाभावाद्दृष्टं लिङ्गं न विद्यते 3/2/6
सूत्र संख्या :6

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : ‘‘यह यज्ञदत्त है,’’ यदि सन्निकर्ष के होने पर यदि ऐसा विचार किया जावे, आत्मा देखा नहीं जाता, अर्थात् आत्मा का प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञान नहीं होता और प्रत्यक्ष के न होने पर दृष्ट सम्बन्ध से सिद्ध कोई लिंग है जैस अग्नि और धूम के सम्बन्ध को प्रत्यक्ष से जानकर धूम की विमानता को अग्नि की विद्यमानता का लिंग समझते हैं। ऐसे ही आत्मा के प्रत्यक्ष न होने से उसका लिंग निय नहीं हो सकता, इसलिए आत्मा की सत्ता को सिद्ध करने वाला काई लिंग नहीं हो सकता, इसलिए आत्मा किया जावे। प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से आत्मा की सिद्धि न होने से उसकी सत्ता का मानना ठीक नहीं हो सकता।