सूत्र :यदि दृष्टमन्वक्षमहं देवदत्तोऽहं यज्ञदत्त इति 3/2/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि इस प्रकार आत्मा का ज्ञान हो जाता है कि मैं देवदत्त या मैं यज्ञदत्त हूं तो अनुमान आदि से उसके सिद्ध करने के परि श्रम से क्या लाभ, क्योंकि जब इन्द्रियों से जान लिया कि यह देवदत्त है और यह यज्ञदत्त है, तो जिस प्रकार हाथी को चिंघाड़ते हुए देखकर अनुमान करने की आवश्यकता ही नहीं रहती, इसी प्रकार यहां भी अनुमान करने की आवश्यकता ही क्या है?