सूत्र :प्रवृत्तिनिवृत्तिश्च प्रत्यगात्मनि दृष्टे परत्र लिङ्गम् इति प्रथम आह्निकः3/1/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अपने राग और द्वेष के अनुसार किसी वस्तु की प्राप्ति में प्रवृत होना और किसी को छोड़ने से जैसे अपनी सत्ता का अनुमान होता है, ऐसे ही अन्य मनुष्यों के कर्म देखकर, उनकी किसी से निवृत्ति और किसी में प्रवृत्ति का अनुभव करके, दूसरों में भी आत्मा के होने का अनुमान होता है।
व्याख्या :
प्रश्न- चुम्बक पत्थर लोहे को अपनी ओर खेंच लेता है, उससे अनुमान होता है कि उसमें आत्मा है। यदि उसमें ज्ञान नहीं? तो और वस्तुओं को क्यों नहीं खेंचता, केवल लोहे को ही क्यों खेंचता हैं?
उत्तर- चुम्बक पत्थर लोहे को अपनी ओर खंच लेता है, परन्तु, उसको हटा नहीं सकता, इसलिए आत्मा को होना सिद्ध नहीं। यदि प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति का प्रमाण भी मिलता, तब उसमें आत्मा को होना पाया जाता इसी लिक कत्र्ता स्वतन्त्र माना है, जिसमें करना, न करना और उल्टा कारना पाया जावे उसमें आत्मा होता है; शेष क्रिया परमात्मा के नियम होती है।
वैशेषिक दर्शन के तीसरे अध्याय का पहिला आह्नि समाप्त हुआ