सूत्र :आत्मेन्द्रियार्थसंनिकर्षे ज्ञानस्य भावोऽभावश्च मनसो लिङ्गम् 3/2/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रश्न- इन्द्रियों के साथ आत्मा का सम्बन्ध होने से ज्ञान हो जाता है?
अर्थ- आत्मा की विद्यमानता में इन्द्रियों के साथ वस्तु का सम्बन्ध होने पर ज्ञान का होना और न होना, मन का लिंग है अर्थात् जब इन्द्रियों के साथ मन का संयोग आत्मा से होता है और वस्तु का इन्द्रिय के साथ सम्बन्ध होता है, तब आत्मा का ज्ञान होता है। यदि मन का इन्द्रिय के साथ संयोग न समझ में आपकी बात नहीं आई’’, या ‘‘मैंने उसको जाते हुए नहीं देखा।’’
व्याख्या :
प्रश्न- मन क्या वस्तु है?
उत्तर- मन अन्तःकरण है, अगर आत्मा को फोटोग्रफर इस शरीर को कैमरा मान लिया जावे, तो वह शीशा जिसके द्वारा प्रतिबिम्ब भीतर प्रवेश करता है, इन्द्रियां हैं। अइौर जिसे शीशे पर छाया चित्र उतरता है वह मन है। यदि इन्द्रिय न हों तो छाया ही नहीं पड़ेगी, यदि मन हो तो इन्द्रिय पर छाया उल्टी पड़ेगी, उससे किसी प्रकार का ज्ञान नहीं होगा। किन्तु जब वह छाया मन पर जाकर सीधी होगी, तब जीवात्मा को उसका ज्ञान होगा। इसलिए मन को अतःकरण जानो; दूसरे सुख-दुःख के अनुभव करने का साधन भी मे नही है।
प्रश्न- मन, अणु है या विभु?
उत्तर- यदि मन विभु=सारे शरीर में रहने वाला होता तो उसकी सारी इन्द्रियों के साथ एक साथ ही सम्बन्ध होता जिससे आत्मा और इन्द्रिय के सम्बन्ध ज्ञान का होना आवश्यकीय हो जाता। किसी अवस्था में भी ज्ञान का न होना सम्भव ही नहीं था। इसलिए मन अणु है, और वह शरीर हृदय स्थान में रहता है।
प्रश्न- भौतिक है या अभौतिक?
उत्तर- मन भौतिक है, परन्तु उसकी दो अवस्थायें हैं- एक नित्य और दूसरी अनित्य। यहां नित्य से तात्पर्य अनादि जन्म अर्थात् बन्धन के आरम्भ से लेकर मोक्ष पय्र्यन्त रहने वाला वाला है न कि परीक्षा का समय यहां नहीं किन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि मन वह थैली है जिसमें जीवात्मा के कर्मों के संस्कार और ज्ञान अंकित रहते हैं जब तक मन रहता है तब संदिग्ध ज्ञान और कर्मों के संस्कार रह सकते हैं। और जहां मन का नाश हुआ, झट कर्म पंरपरा का नाश हुआ।
प्रश्न- यद्यपि विभु है, परन्तु कारण होने के कारण उससे सक समय में दो इन्द्रियों के विषयों ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।
उत्तर- यदि मन विभु समझा जावे तो, उसकी शक्ति एक सी ही सारे देश में पड़ेगी, ऐसी अवस्था में सारी इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान एक साथ होना मानना पड़ेगा। यह बात बिना किसी कारण के सम्भव ही नहीं कि एक स्थान पर मन की शक्ति कार्य करे और दूसरी जगह न करे।
प्रश्न- जब हम किसी वस्तु को खते हैं, तब उसके रूप्, रस और गन्ध का एक साथ ही ज्ञान हो जात है?
उत्तर- यह विचार भ्रम से उत्पन्न हुआ है कि एक साथ ज्ञान होता है, किन्तु मन की चंचलता और वेग के कारण परम्परा से ही ज्ञान होता है। प्रथम रूप का, फिर गन्ध का तदुपरान्त रस का जो लोग मन के वेग और एक ही समय की वास्तविकता को नहीं समझ सकते, उनको इस प्रकार सन्देह होता है।
प्रश्न- जब कि इन्द्रियों से सारे गुणों का ज्ञान हो सकता है, तो मन के मानने की क्या आवश्यकता है?
उत्तर- सुख दुःख का ज्ञान किसी इन्द्रिय से नहीं होता, इसलिए इन गुणों के जानने के लिए जीवात्मा को किसी कारण की आवश्यकता है, और वह कारण मन है।