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दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :यस्मा-द्विषाणी तस्माद्गौरिति चानैकान्तिकस्योदाहरणम् 3/1/17
सूत्र संख्या :17

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : यह सींग वाला है इसलिए गाय है, यह अति व्याप्त वाले हेतु का दृष्टान्त है, क्योंकि सींग वाले और भी पशु होते हैं। इस हेतु भैंस, बकरी आदि सब ही गौ मानने पड़ेंगे। जो हेतु या धर्म साध्य को छोड़कर औरों में भी चला जावे वह अनैकान्तिक हेत्वाभास कहाता है। ऐसा साध्य को सिद्ध नहीं कर सकता। इसलिए जो गाय के होने में सींग वाली होने का हेतु दिया, यह गौ को सिद्ध नहीं करता, इसलिए अहेतु हावेने से हेत्वाभास भी कहावेगा।

व्याख्या :
प्रश्न- हैत्वाभास कितने प्रकार के होते है? उत्तर- पांच प्रकार के हेत्वाभास होते हैः- (1) अनैकान्तिक, (2) विरूद्ध, (3) प्रकरणसम, (4) साध्यसम और कालीतीत इनकी विशेष परीक्ष न्याय दर्शन में देखो। प्रश्न- हेतु कितने प्रकार के हैं? उत्तर- पहिला ‘‘केवलान्वयी’’ जो साध्य में समान पाया जावे, कहीं विरोध न हो। ‘‘केवल व्यतिरेकी’’ जो साध्य से नितान्त हो पृथक् हो और उसका विरोधी हो, तीसरा ‘‘अन्वय व्यतिरेकी’’ जो किसी अंश (देश) में तो मिलता हो और किसी अंश में पृथक् हो। यह तीसरे प्रकार का हेत्वाभास हो जाता है। पहिले दो में तो विरूद्ध हेतु का होना किसी प्रकार सम्भव ही नहीं, इसलिए वे हेत्वाभास नहीं हो सकते। इन पांच प्रकार के हेत्वाभासों के नाम और भी हैं। तीन का नाम तो पूर्व सूत्र में आ चुका है, अर्थात् अप्रसिद्ध, असत् असन्दिग्ध; परन्तु सूत्र में ‘‘च’’ के होने से दो और का भी ग्रहण होता है अर्थात् असिद्ध और वाध इसलिए अनेकान्तिक दो प्रकार का है- एक साधारण, दूसरा असाधारण। साधारण को तो सूत्र में बता दिया है अर्थात् सींग वाली होना जो गौ के लिए हेतु है यह सामान्यतथा गौ को छोड़कर और पशुओं में पाया जाता है। परन्तु जो हेतु प्रतिज्ञा में न रहे और प्रतिज्ञा के विरूद्ध भी न रहे उसको साधारण कहते हैं। जैसे कहा जाए कि आकाश नित्य है इस प्रतिज्ञा के प्रमाण में हेतु दिया जावे कि शब्द का आश्रय होने से। यहां पर शब्द का आश्रय परमाणु आदि नित्य पदार्थ हैं अथवा घड़ा आदि अनत्य पदार्थ हैं इसका नहीं चलता। इसलिए असाधारण अनैकान्तिक हेत्वाभास है। प्रश्न- विरूद्ध हेत्वाभास किसकों कहते है? उत्तर- जो हेतु पक्ष (प्रतिज्ञा) के विरूद्ध हो उसको सिद्ध करने के स्थान में उसका खण्डन करे वह विरूद्ध हेत्वाभास कहाता है। जैसे कहा जावे कि शब्द नित्य है इस प्रतिज्ञा में यह हेतु दिया जावे कि उत्पन्न होने वाला होने से, क्योंकि इस हेतु से शब्द का नित्य होना खण्डित हो जाता है अतः यह विरूद्ध हेतु है। प्रश्न- संदिग्ध या प्रकरण सम किसको कहते हैं? उत्तर- जो हेतु पक्ष की सिद्धि में दिया जावे परन्तु उससे पक्ष की सिद्धि वा असिद्धि दोनों निश्चिय नहीं वह प्रकरण सम हेत्वाभास होगा। जैसे शब्द अनित्य का गुण होने से। इसके विरूद्ध यह हेतु दे सकते हैं कि शब्द अनित्य है कि घट आदि के समान उत्पन्न होने वाला होने से शब्द के अनित्य होने से सन्देह होता है। प्रश्न- साध्यसम वा असिद्ध हेत्वाभास किसको कहते हैं? उत्तर- जो हेतु पक्ष के समान स्वयं साध्य हो वह साध्यसम वा असिद्ध हेत्वाभास कहाता है क्योंकि पक्ष के स्वयं साध्य है। जैसे-छाया द्रव्य है सत्रिय होने से। छाया का सत्रिय होना स्वयं साध्य है, छाया का द्रव्य होना तब सिद्ध हो, जब यह हेतु सिद्ध हो जावे। प्रश्न- असिद्ध या साध्यसम हेत्वाभास एक ही प्रकार का वा उसके भी भेद हैं ? उत्तर- असिद्ध हेत्वाभास तीन प्रकार का है- एक स्वारूप से असिद्ध दूसरा आश्रय से असिद्ध, और तीसरा व्याप्यत्व से असिद्ध। प्रत्येक की परीक्षा करने से लेख वृद्धि होगी अतः आगे चलते हैं। प्रश्न- हेत्वाभास की परीक्षा करने से क्या लाभ हुआ?