DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :प्रसिद्धिपूर्वकत्वादपदेशस्य 3/1/14
सूत्र संख्या :14

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : हेतु वही हो सकता है जो प्रसिद्ध और प्रत्यक्ष सम्बन्ध से लिया गया हो, क्योंकि जब तक व्याप्ति का होना सिद्ध न हो जावेगा तब तक एक सके होने से दूसरे के होने का प्रमाण नहीं मिल सकता, इसलिए। प्रत्यक्ष सम्बन्ध अर्थात् व्याप्ति को हेतु मानकर ही अनुमान हो सकता है, क्योंकि अनुमान के पांच अवयव हैं-एक प्रतिज्ञा, दूसरे हेतु, तीसरा उदाहरण, चौथा उपनय, पांचवां निगमन। यदि व्याप्ति से हेतु देकर अनुमान किया जावे तो वह ठीक होगा यदि व्याप्ति के जानने में भूल होगी तो हेतु में भी भूत हो जावेगी, जब हेतु असिद्ध होगा तब उदाहरण आदि सब ही असिद्ध हो जावेंगे, इसलिए चार प्रकार की व्याप्ति से चार प्रकार के लिगंन बतलाये जिनका हेतु मानकर अनुमान सत्य हो सकता है। इसलिए इन्द्रियों के विषयों को प्रसिद्ध अर्थात् कारण मानकर ही उनसे आत्मा की सत्ता का अनुमान करना व्याप्तिसे सिद्ध होता है। परन्तु जो लोग शरीर से ज्ञान का सम्बन्ध बताते हैं, वे बड़ी भूल पर हैं, क्योंकि यदि शरीर का गुण ज्ञान होता तो मृत्यु, सुषुप्ति और मूर्छा आदि का होना सम्बन्ध ही न था। उस समय तो जीवात्मा और मन के मध्य तमोगुण का परदा आ जाने से इस प्रकार की अवस्थयें होती हैं; परन्तु शरीर के ज्ञानी होने से यह सम्भव नहीं क्योंकि शरीर का किसी के साथ कत्र्ता और कारण का सम्बन्ध नहीं, इसलिए उसका ज्ञान, जो कि स्वाभाविक गुण है, नित्य रहना चाहिए, इसलिए कार्य शरीर ज्ञान को मानना ठीक नहीं है।

व्याख्या :
प्रश्न- शरीर के सहारे ज्ञान को मानने में क्या दोष है? उत्तर- शरीर और ज्ञान का सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता; मृत शरीर पाया जाता है परन्तु उसमें ज्ञान नहीं होता। प्रश्न- व्याप्ति=नियत सम्बन्ध क्या वस्तु है? उत्तर- परीक्षा के योग्य वस्तु का जब हेतु के साथ ऐसा सम्बन्ध सिद्ध हो जिसका किसी प्रकार भी अभाव न पाया जावे तो उस सम्बन्ध को व्याप्ति कहते हैं। जैसे अग्नि से धूम उत्पन्न होता है, बिना अग्नि के कभी धुआ नहीं पाया जाता माता-पिता से सन्तान उत्पन्न हैं, परन्तु बिना माता-पिता के कभी सम्तान उत्पन्न नहीं होती, परन्तु यह कोई दृढ़ नियम नहीं कि जहां अग्नि हो वहां धूम भी अवश्य हो, जहां माता-पिता हों वहां सन्तान भी अवश्य हों, अग्नि बिना धूम के और माता-पिता बिना सन्तान के मिल सकते हैं, परन्तु धूम और सन्तान बिना अग्नि और माता-पिता के नहीं मिल सकते। प्रश्न- अग्नि के बिना धूम प्रायः दीख पड़ता है, जैसे रेल का इंजन चला जाता है परन्तु पीछे रह जाता है। उत्तर- यद्यपि ऐसा होता है परन्तु बिना अग्नि के धुआं उत्पन्न नहीं हो सकता जहां से यह धुआं उठा है वहां पर अग्नि थी जो दूसरी सत्रिय शक्ति के द्वारा दूर चली गई। इस दृष्टान्त से यह सिद्ध नहीं होता कि बिना अग्नि के धुआं उत्पन्न हुआ है। इसलिए धुएं और अग्नि का सम्बन्ध सिद्ध है, केवल एंजन के तीव्र गमन से दूरी हो गई है। इसलिए धूएं को देखकर बुद्धि से विचार करने से पता लग जावेगा कि यहां पर अग्नि है। बिना अग्नि के धुआ उत्पन्न नहीं हो सकता। इस नित सम्बन्ध का नाम व्यप्ति है। प्रश्न- क्या, लोग आधार और आधेय के सम्बन्ध को व्याप्ति मानते हैं, उनका मानना ठीक नहीं? उत्तर- जहां शक्ति से अनुमान होता है वहां कत्र्ता के अनुमान के लिए शक्ति से अनुमान होगा, वहीं पर आधार और आधेय से सम्बन्ध लिया जाता है। इस विषया में इनका मत भी सत्य है, नियत धर्म और धर्मी का वही सम्बन्ध है, इसलिए दोनों का अभिप्राय एक है। प्रश्न- व्याप्ति में कितने दोषारोपण होते हैं सिसे उसका मानना ठीक नहीं माना जाता है?

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