सूत्र :अज्ञानाच्च 3/1/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : घड़े आदि में ज्ञान नहीं क्योंकि न प्रत्यक्ष से घड़े में ज्ञान पाया जा है नहीं अनुमान से उसका ज्ञान होता है। उपमान प्रमाण से कुछ पता नहीं लगता, कोई शब्द प्रमाण भी ऐसा नहीं तो घड़े आदि जड़ वस्तुओं को चेतन बतावे।
व्याख्या :
प्रश्न-क्या प्रमाण से न सिद्ध होने पर किसी वस्तु की सत्ता का इनकार हो सकता है? नहीं। क्योंकि बहुत सी वस्तु ऐसी हो सकती हैं जिसके होने में कोई प्रमाण नहीं।
उत्तर- प्रत्येक वस्तु की सत्ता प्रमाणों से जानी जानी जाती है जिसकी सत्ता का सारे ही प्रमाण अभाव बतलावें, उसकी सत्ता किसी प्रकार नहीं मानी जा सकती। यदि बिना प्रमाण से जानी हुई सत्ता को स्वीकार करने लगें तो शशशृगंन (खरगोश के सींग) वन्धया का पुत्र और आकायश के फूल भी जो असम्भव पदार्थ है सम्भव हो जावेंगे, जिससे झूठ सच की पहचान हो जाती रहेगी। इसलिए जिसकी सत्ता का ज्ञान सम्पूर्ण प्रमाणों में से किसी से न हो, उसका अभाव ही मानना चाहिए।
प्रश्न- आंख, नाक, कान आदि इन्द्रियों से आत्मा का अनुमान नहीं हो सकता क्योंकि कान आदि दोनों सम्बन्धों के बिना यह सिद्ध नहीं हो सकता कि एक के बिना दूसरा नहीं हो सकता। जब तक यह सम्बन्ध न हो कि एक के बिना दूसरा न हो सके तब तक अनुमान किस प्रकार हो सकता है।