सूत्र :अर्थान्तरं ह्यर्थान्तरस्यानपदेशः 3/1/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे धूम घोड़ा आदि वस्तुओं से पृथक् हैं, ऐसे ही अपने कारण अग्नि से भी पृथक् है, तो भी, दूसरी वस्तु होने पर भी धूम घोड़े की सत्ता को प्रकट नहीं करता, किन्तु अग्नि की सत्ता को ही प्रकट करता है, इसमें विशेष गुण होना ही कारण है और वह स्वभाव के अतिरिक्त और नहीं हो सकता। इसलिए जिन वस्तुओं में सम्बन्ध हो उन्ही को हेतु मानकर अनुमान हो सकता है। यदि कार्य से पृथक् दूसरी वस्तु के साथ भी स्वाभाविक सम्बन्ध स्थिर हो जावे तो वह उसके अनुमान का हेतु हो सकता है। जहां सम्बन्ध न हो वहां सम्बन्ध ठहराना युक्ति के विरूद्ध है। आशय यह कि जिस प्रकार असम्न्ध वस्तुओं को हेतु मानकर उनसे अनुमान करना अयुक्त होता है वैसे हमारा पक्ष अयुक्त नहीं, किन्तु आत्मा और इन्द्रियों में सम्बन्ध है क्योंकि वे कारण नहीं, किन्तु आत्मा कत्र्ता है। जबकि कारण हों और कत्र्ता न हो तो कारण नहीं कर सकते। यदि कत्र्ता ही हो तो वह बिना कारण के कुछ नहीं कर सकता। बाह्य कारणों से कार्य होता हुआ देखकर कत्र्ता के होने के कारण का अनुमान होता है जैसे घड़ी को चलता हुआ देखकर चलाने वाले को देखने पर भी, अनुमान से चाबी देने वाले का ज्ञान हो सकता है। इसी प्रकार इन्द्रियों के विषयों के नित होने से आत्मा का पता लगता है।