सूत्र :प्रसिद्धा इन्द्रियार्थाः 3/1/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन्द्रियों के विषय प्रसिद्ध हैं, अर्थात्-आंख रूप को ग्रहण करती है, कान शब्द को ग्रहण करते हैं, रसना को ग्रहण करती है, नाक गन्ध का अनुभव करती है और त्वचा स्पर्श को बताती है। प्रत्येक इन्द्रिय जिसे तत्व की अधिकता से उत्पन्न होती है, उसी तत्व के गुणों को ग्रहण करती है इसलिए इंद्रियों के विषय प्रसिद्ध और नियत हैं। कोई मनुष्य रूप को बिना आंख के नहीं देखता, कोई मनुष्य रस को बिना जिव्हा के नहीं चख सकता, ऐसे ही त्वचा के बिना मनुष्य उष्ण, शीत, कठोर और कोमल को नहीं पहचान सकता, गन्ध को बिना नाक के नहीं जान सकता और कान के बिना शब्द का ज्ञान नहीं हो सकता। जो इंद्रिय बिड़ जाती है, उसके विषय का ज्ञान जीवात्मा को नहीं हो सकता। जैसे अंधे को रूप का ज्ञान, बहरे को शब्द का ज्ञान नहीं होता। इसी प्रकार सारी इंद्रियाँ और उसके विषयों की अवस्था प्रसिद्ध है। उसके विषय में अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है।