सूत्र :कार्येषु ज्ञानात् 3/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि शरीर के मूल कारण परमाणुओं में ज्ञान होता तो उनसे बने हुए घर आदि में चेतना पाई जाती। जिस प्रकार मिट्टी के गुण प्रत्येक पार्थिव पदार्थ में पाये जाते हैं ऐसे ही चेतनाता भी पाई जानी चाहिए, किन्तु उनका चेतन होना किसी प्रकार भी नहीं पाया जाता, इसलिए शरीर के कारण परमाणु में चेतनता नहीं परन्तु शरीर में चेतनता पाई जाती है जिससे पता लगता है कि शरीर से पृथक् कोई चेतन शक्ति हैं जिस प्रकार उष्ण जल में जल का गुएा उष्णता न होने से यह अनुमान होता है कि गर्मी का गुण नैमित्तिक है, जो अग्नि के संयोग से पाई जाती है। जिस वस्तु में आत्मा नहीं उस में चेतनता भी नहीं।
व्याख्या :
प्रश्न- आत्मा सर्व व्यापक है, इसलिए गुण चेतनता आदि भी प्रत्येक वस्तु में होने चाहियें?
उत्तर- आत्मा दो हैं एक शरीर में व्यापक होने से जीवात्मा, दूसरा जगत् में व्यापक होने से परमात्मा। परमात्मा के सम्पूर्ण ज्ञान आदि स्वाभाविक होने कोई नैमित्तिक न होने से सर्वत्र एक समान कार्य हो रहा है जिससे उसकी चेतनता का ज्ञान सर्वत्र नहीं हो सकता। परन्तु जीवात्मा के एक शरीर में व्यापक और परिच्छिन्न होने से उसमें नैमित्तिक गुण ज्ञानादि का दूसरे कारणों से होना सम्भव है; इसलिए विशेष चेतन के ज्ञान आदि चेष्टा की यही परीक्षा है।
प्रश्न- घड़े आदि में भी सूक्ष्म ज्ञान विद्यमान है, परन्तु प्रतीत नहीं होता क्योंकि स्थूल वस्तु ही दीखा करती है।