सूत्र :भूतमभूतस्य 3/1/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शत्रु के उपस्थित होने से जब शत्रु के त्रोधादि को देखकर शत्रु के होने का अनुमान होता है। यह तीसरे प्रकार का विरोधि लिगंन है। जैसे सर्प का वेग से फुंकारते और झाड़ी की ओर देखते हुए देखकर पता लगाता है कि झाड़ी में न्यौला है इस समय सर्प की उपरोक्त अवस्था विरोधि न्ययौने के झाड़ी में होने का लिगंन है। इन तीन सूत्रों में विरोधि लिड.गों को बतलाया कि प्रथम भूत का अभूत दूसरे स्थल पर वर्तमान का भत, भूत का भूत लिगंन हो सकता है।