सूत्र :कार्यं कार्यान्तरस्य 3/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे रूप कार्य दूसरे कार्य स्पर्श का लिगंन है अर्थत् जो वस्तु स्पवत् है उसका ज्ञान स्पर्श करते हैं। यह केवल उदाहरण कहा गया है नहीं जो अकार्य है वह उसके नित्य होने का लिगंन है अर्थात् जो उत्पन्न होने वाला नहीं व निरवयव है सावयव नहीं। प्रत्येक सावयव अनित्य है अर्थात् उत्पत्ति धर्मा है। अब विरोधि लिगंन का लक्षण भी सूत्रकार ही करते हैं-