सूत्र :सोऽनपदेशः 3/1/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन नियमित विषयों के प्रसिद्ध होने का आश्रय शरीर नहीं अर्थात् यह शरीर के सहारे नहीं रहते। जो दोनों प्रकार अर्थात् अनुकूल और प्रतिकूल युक्तियों से प्रमाणित नहीं हो सकते। क्या ज्ञान शरीर का गुण है। उसका कार्य होने से, उसके रूप आदि के समान इंद्रियों का गुण हो सकता है। इस सन्देह को दूर करते हैं कि शरीर का कार्य ज्ञान नहीं इसलिए यह युक्ति नहीं किन्तु प्रमाणाभास है, जो अज्ञानियों को भूल से प्रमाण विदित होता है।
प्रश्न- नहीं, ज्ञान शरीर का ही कार्य है, क्योंकि शरीर के बिना कभी ज्ञान नहीं होता।