सूत्र :संदिग्धाः सति बहुत्वे 2/2/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द बहुत होते हैं अतः उनका नित्य मानना सिद्ध नहीं हो सकता किन्तु सन्दिग्ध हैं क्योंकि जो युक्तियां शब्द के नित्य होने में दी गई हैं, वे अनित्य वस्तुओं में भी पाई जाती हैं काश्यी आचाय्र्य कहते हैं कि विरोध, सन्दिग्ध और असिद्धी में भी यह बातें पाई जाती हैं, जो तीन हेतु हैं कि गुरू का शिष्य को पढ़ाना, शब्द का द्वितीयवार याद आना और शब्द का बाराम्बार कहना, ये तीनों हेतु अनित्य कर्म में पाये जाने से संदिग्ध हैं। जैसे वह यह कहते हैं कि नाचना सीखता है। नाच का अभ्यास करता है, वह पांच बार नाच, गोकुल उसी प्रकार नाचता है जैसे रामप्रसाद। इन कर्मों को भी नित्य मानना पड़ेगा। जब कि कर्म नित्य नहीं हो सकता, इसलिए शब्द को नित्य कहना ठीक नहीं।
प्रश्न- यदि शब्द नित्य न हो तो अक्षरो का नियत होना, जैसे 63 अक्षर हैं, फिर उनके छन्दों का नियत होना आदि कैसे हो सकता है। इसलिए संख्या नियत होने से शब्द को नित्य ही मानना चाहिए, अन्यथा अनन्त अक्षर पड़ेंगे?