DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :नित्यवैधर्म्यात् 2/2/27
सूत्र संख्या :27

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : नित्य शब्द के गुणों में विरोध है। इसलिए शब्द भी अनित्य है।

व्याख्या :
प्रश्न- शब्द नित्य है, क्योंकि उसमें बार-बार लौटना (आवृत्ति) पाया जाता है, कहने तो केवल का उसका प्रत्यक्ष होता है, उत्पत्ति नहीं होती। उत्तर देवदत्त कहता है उसी को यज्ञदत्त कहता है इस प्रकार के लौटने से उन दानों के शब्द एक जाति वाले होने से गुणों में समान हैं। वहीं शब्द होने का भ्रममात्र है, वास्तव में उत्पन्न होने वाला होता तो क्योंकि प्रकाश प्रकाशक के द्वारा होता है। जैसे घर में घड़ा हो परन्तु अंधेरें के कारण प्रकट न होता दीपक के आ जाने से वह प्रकट हो जावेगा परन्तु बनाने का काम कुम्हार से होगा। इसलिए शब्द कहने वाले से उत्पन्न होता है न कि प्रकट होता है। उसके अनित्य होने में और भी हेतु देते हैः-

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