सूत्र :लिङ्गाच्चानित्यः शब्दः 2/2/32
सूत्र संख्या :32
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार वंशी आदि का शब्द उत्पत्तिधर्मा (उत्पन्न होने वाला) होने से अनित्य है वैसे ही वर्णात्मक भी अनित्य ही हैं क्योंकि कान से सुना जाना दोनों शब्दों में समान होने से दोनों प्रत्येक जाति एक ही है। जिस जाति में अनित्य है। अब उपरोक्त सिद्धान्तों के सुत्रों का शब्द को नित्य मानने वाला दूषित बताकर खण्डन करता है।