सूत्र :द्वयोस्तु प्रवृत्त्योरभावात् 2/2/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द अनित्य नहीं हो सकता। क्योंकि ज गुरू अपने शिष्य को विद्या का दान करता हैः उसी वस्तु का होता है जो स्थायी हो यदि शब्द स्थायी न हो तो गुरू की शिष्य के पढ़ाने में प्रवृत्ति नहीं हो सकती। इसलिए शब्द को ठहरने वाला मानना पड़ेगा न कि बोलने से पैदा होने वाला और बोलने के उपरान्त ही नाश होने वाला। और बोलने के उपरान्त ठहरने वाला माना जावे तो उसका नित्य होना सिद्ध होगा।
व्याख्या :
प्रश्न- कुछ देर तक ठहरने से नित्य कैसे होगा?
उत्तर- अगर गुरू के कहने के उपरान्त कुछ देर तक ठहरने वाला मान लिया जावे तो उसके नाश का कोई कारण प्रमाणित नहीं होता जिसे उसका नाश सिद्ध हो। जिसका नाश न हो वह नित्य है ही। इस पर और हेतु हैं।