सूत्र :नातीतानागतयोरितरेतरापेक्षासिद्धिः II2/1/39
सूत्र संख्या :39
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : भूत और भविष्य में परस्पर कोई सम्बन्ध और अपेक्षा नहीं है, ये दोनों वर्तमान की अपेक्षा से सिद्ध होते हैं जो वर्तमान से पहले हो चुका, वह भूतकाल है और जो उससे आगे होगा वह भविष्यकाल है। वर्तमान को छोड़ देने से भूत और भविष्य में कोई सम्बन्ध या अपेक्षा नहीं रहती, इसलिए वर्तमान के खण्डन से तीनों कालों का खण्डन हो जाता है। जबकि वादी भूत और भविष्य दोनों कालों को मानता है तो वह उनके आधार वर्तमान काल से कैसे इन्कार कर सकता है। जब वादी को या तो तीनों कालों से इन्कार करना पड़ेगा या तीनों को मानना पड़ेगा। पहली दशा में तो वह प्रतिज्ञाहानिरूप निग्रहस्थान में पड़ेगा, क्योंकि उसने आक्षेप करते समय इन्कार और भविष्य दोनों कालों में स्वीकार किया था, अब इनसे इन्कार किस तरह कर सकता हैं दूसरी दशा में आक्षेप ही निर्मल हो जाता हैं क्योंकि जिस वर्तमान काल का खण्डन किया था उसको भी स्वीकार कर लिया। वर्तमान की सिद्धि में सूत्रकाल और भी प्रमाण देते हैं।