सूत्र :रोधोपघातसादृश्येभ्यो व्यभिचारादनुमानमप्र-माणम् II2/1/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अनुमान के लक्षण में जो दृष्टान्त दिए गए हैं, वे सब व्यभिचार दोष से युक्त हैं। प्रथम यह कहा गया है कि ऊपर पहाड़ में वर्षा हुई होगी, किन्तु यह अनुमान ठीक नहीं, क्योकि यदि ऊपर के भाग में किसी पहाड़ के गिर जाने से या बन्द लगा कर पानी रोक दिया जाये तो जिस समय वह पहाड़ का टुकड़ा अलग होगा बन्द खोला जायेगा, तब एक साथ नदी में बाढ़ आ जायेगी। जिससे वर्षा के होने का अनुमान सर्वथा मिथ्या सिद्ध होगा। यदि नही की बाढ़ का कारण केवल पहाड़ में वृष्टि का होना ही होता, तब तो ठीक था, परन्तु उसका कारण पानी का रूक जाना भी है, इसलिए व्यभिचार दोष होने से अनुमान ठीक नहीं। दूसरे यह भी कहा गया था कि चीटियों के अण्डों के निकलने और मोर का शब्द सुनने से यह अनुमान होता है कि अब वर्षा होगी, इसमें भी व्यभिचार दोष आता है। क्योंकि अति वेग से किसी वस्तु के गिरने से भी चींटियों को अण्डों के नाश होने का भय होता है, तभी वे अण्डों को लेकर भागने लगती हैं, यदि उनका घर टूट जाये तो वे अवश्य दौड़ने लगेंगी। मोर शब्द से जो मोर के होने का अनुमान किया जाता है।, वह भी ठीक नहीं क्योंकि मनुष्य भ मोर का शब्द कर सकता है। इसलिए मोर के शब्द मात्र से जो अनुमान किया जायेगा, वह अन्यता हो सकता है। प्रमाण वह हो सकता है,जिसमें सन्देह न हो और जो आप संदिग्ध है, वह प्रमाण कोटि में कैसे आरूढ़ हो सकता?इसलिए तीनों प्रकार के अनुमान ठीक नहीं।
व्याख्या :
प्रश्न- अनुमान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर- व्याप्ति अर्थात् सम्बन्ध के ज्ञान से।
प्रश्न- जहां सम्बन्ध के ज्ञान में विकल्प होगा, वहां कारण के ठीक न होने से अनुमान ठीक न होगा। इस वास्ते मिथ्या अनुमान के खण्ड से अनमान मात्र का खण्डन नहीं हो सकता।
उत्तर- हो सकता है, क्योंकि सब अनमानों में विकल्प की सम्भावना है, क्योंकि उनकी सिद्धि में जो हेतु और उदाहरण दिए हैं, वे सब व्याप्ति दोष से दृष्ट और वैकल्पिक है। इसका स्वयं सूत्रकार अक्षपाद देते हैं-