सूत्र :वर्तमानाभावः पततः पतितपतितव्यकालोपपत्तेः II2/1/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब वृक्ष से फल नीचे को गिरता है तब वृक्ष और भूमि में जो अन्तर है, उसमें से जो अन्तर गिरते हुए फल और भूमि में होता है, उसे भूतकाल कहते है। अर्थात् वृक्ष से फल के गिरने में जो समय लगा है, वह भूतकाल है और फल के भूमि तक पहुंचने में जो समय लगेगा, वह भविष्य काल है, तीसरा कोई अन्तर नहीं, जिसके लिए वर्तमान काल की सत्ता मानी जाये। इसलिए वर्तमान काहोना सर्वथा असम्भव है। इसका उत्तर सूत्रकार गौतम देते हैं-