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न्याय दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

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सूत्र :नैकदेशत्राससादृश्येभ्योऽर्थान्तरभावात् II2/1/36
सूत्र संख्या :36

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : अनुमान के खण्डन में जो हेतु दिए गए हैं, वे ठीक नहीं और उसमें व्यभिचार सिद्ध करने के लिए जो दृष्टान्त दिए गए हैं वे भी निर्बल हैं। क्योंकि पहला दृष्टान्त तो एक देश का है, सदा सर्वत्र नदी में बाढ़ इस रीति से नहीं आती और चीटियों का घर टूटने से अण्ड़े लेकर भागना भी भय के कारण से हैं, वह भी स्वाभाविक नहीं। और दूसरे कारण के होने से यह घटनाएं पहली घटनाओं से बिल्कुल भिन्न हैं। इसलिए अन्य वस्तु के होने से हेतु में व्यभिचार दोष नहीं रहा। दूसरे शब्दों में इसे यों भी कह सकते हैं कि ये जो कारण हैं, सब कृत्रिम हैं और अनुमान के कारण वास्तविक हैं, इसलिए वास्तविक हेतुओं के सामने कृत्रिम हेतुओं के प्रस्तुत करने से अनुमान का खण्डन नहीं हो सकता। क्योंकि अनुमान का हेतु कृत्रिम हेतुओं से भिन्न बताया गया है, जो कारण अनुमान का हेतु नहीं है, उनको हेतु मानकर अनुमान का खण्ड करना ठीक नहीं हैं, क्योंकि जल के वेग से चलने और उसमें झाग, लकड़ी पत्ते आदि को बहते और पानी को मैला देखने से पहाड़ में वर्षा होने का अनुमान किया जाता है, केवल जल के आधिकता से अनुमान नहीं किया जाता। जल को रोक देने से उक्त तीनों बातें तो न होंगी, केवल जल की अधिकता होगी, इसलिए यह अनुमान का कारण ही नहीं और न ही इससे कोई बुद्धिमान अनुमान करेगा। चीटियों के बहुत देर तक अण्डों को लेकर चलने से वर्षा का अनुमान होता हैं, उपघात से वे अण्डों को लेकर चलती हैं, वह तात्कालिक होने से अनुमान का प्रयोजक नहीं। मयूर के सृदश मनुष्य के शब्द से जो मयूर के होने का अनुमान करता है, वह मिथ्यानुसार भ्रान्ति से वास्तविक और कृत्रिम शब्द में भेद न करने से होता है, इसलिए यह अनुमान नहीं है। मीनों प्रकार के अनुमान के खण्डन में जो हेतु दिए थे, उनका उत्तर दिया गया, जो कि अनुमान तीनों कालों का होता है, इसलिए वर्तमान काल को जो भूत और भविष्य के भेदों का कारण हैं-सिद्ध करते हैं, प्रथम वादी निस्नलिखित सूत्र में वर्तमान की सत्ता का निषेध करता है।