DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :धारणाकर्षणोपपत्तेश्च II2/1/33
सूत्र संख्या :33

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : बहुत सी वस्तुओं के धारण करने और खीचंने से भी अवयवी का होना सिद्ध होता है, क्योंकि यदि सब परमाणु ही हों, और उनकी तरकीब से बनी हुई कोई वस्तु न हो तो खींचने से एक ही परमाणु आना चाहिए, शेष परमाणु नहीं आने चाहिएं क्योंकि समस्त वस्तुओं को जहां स्थित करते हैं वह वहां ही स्थित रहती है, इस वास्ते धारण और आकर्षण से अवयवी का होना सिद्ध होता है। यदि अवयवी अवयपवों से पृथक न माना जाये तो धारण और आकर्षण हो ही नहीं सकते।

व्याख्या :
उत्तर-क्या अवयवों (टुकड़ो) का धारण और आकर्षण नहीं हो सकता? जिस तरह हम एक साथ चुनी हुई इँटी को किसी चौकी पर धारण किया हुआ देखते हैं, वे इँटें सब अलग-अलग हैं। उत्तर- जिस समय उस चौकी को खींचोगे तो वह शीघ्र ही गिरने लगेगी, इस वास्ते धारण से भी आकर्षण के होते ही गिरने लगेंगी, पर जिस समय किसी टुकड़े को खींचते हैं तो इस तरह अलग-अलग टुकड़े नहीं हो जाते, किन्तु समस्त लकड़ी खिंच आती है इसलिए किसी बनी हुई वस्तु को केवल परमाणुओं का समूह नहीं कह सकते, किन्तु उनमें सिवाय कर एक कर दिया है। प्रश्न-सिवाय परमाणुओं में संयोग शक्ति किसमें रहती है? यदि कहो परमाणुओं में, तो वह उनका स्वाभाविक गुण है या नैमित्तिक? उत्तर- पृथ्वी के परमाणुओं के संयोग शक्ति, जल और अग्नि के कारण उत्पन्न होती है। कच्ची इँटों में जल के कारण और पक्की इँटों में अग्नि के कारण। जल के परमाणुओं में अग्नि के कारण और अग्नि के परमाणुओं में वायु के कारण वायु में चेतन की त्रिया से संयोग शक्ति पैदा होती है। प्रश्न- यदि इँट में संयोग शक्ति न मानी जाये, इँट को केवल परमाणुओं का समूह ही माना जाये तो क्या हर्ज होगा? उत्तर- यदि ऐसा मानें तो धूल में और ईंट में क्या भेद होगा? क्योंकि पार्थिव परमाणु समूह दोनों जगह समान हैं, और ईंट को एक कह सकते। इसलिए अवयवी पृथक और परमाणु पृथक हैं। प्रश्न- जैसे असंख्य पुरूषों वाली सेना को एक अवयवी न होने पर भी दूर से‘एक मालूम करते हैं या दूर वन, बुद्धि से वृक्षों को ‘एक’ मालूम करते हैं वैसे ही सब जगह संयोगशक्ति के न रहते हुए भी ‘एक’ ज्ञान हो सकता है।

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