सूत्र :नाप्रत्यक्षे गवये प्रमाणार्थमुपमानस्य पश्यामः II2/1/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वादी का यह आक्षेप निर्मल है, क्योंकि जब तक प्रमाता नील गाय को प्रत्यक्ष न देखले, जब तक केवल गाय के देखने से वह अप्रत्यक्ष नील गाय को नहीं जान सकता। किन्तु धूम को देखकर अग्नि का अनुमान करने वाला यह कह सकता है कि वहां अग्नि है इसका कारण स्पष्ट है अग्नि का परस्पर सम्बन्ध है, इसलिए धूम के देखने से अग्नि का ज्ञान हो जाता है, परन्तु ऐसा सम्बन्ध गौ और नील गाय में नहीं है कि गौ के देखने से नील गाय का ज्ञान हो जावे। इसलिए गौ के प्रत्यक्ष से नील गाय का अनुमान नहीं हो सकता, किन्तु उसको प्रत्यक्ष देखने से उसका ज्ञान होता है। अतः यह आक्षेप कि उपमान में प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष का ज्ञान होता है, ठीक नही। दूसरी बात यह हैं कि अनुमान में साध्य और साधन (अग्नि और धूम) दोनों का ज्ञान होता है, किन्तु उपमान में एक साथ दोनों की सिद्धि नहीं होती और अनुमान अपने लिए होता है और उपमान दूसरे के लिए। जैसे देवदत्त ने धूम को देखा और उसे अग्नि का ज्ञान हो गया, उपमान में जो बतलाया हैं उसे ज्ञान नहीं होता, किन्तु जिसको बतलाया जाता है, उसे ज्ञान होता है।