सूत्र :साध्यत्वादवयविनि संदेहः II2/1/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : तुम जो अवयवी होना मानते हो यह ठीक नही, क्योंकि इसमें साध्य होना अर्थात् प्रमाण का मोहताज होना पाया जाता है। जब तक प्रमाण से अवयवी का होना परिमित न हो जाये तब तक मानना ठीक नहीं। प्रमाण से परिमित होने पर मानना चाहिए और अवयवी के न होने का कारण यह है, कि एक ही वृक्ष में एक भाग तो हिलता है दूसरा बिल्कुल नहीं हिलता, एक भाग का कुछ रेग होना देसरे भाग में दूसरा रंग होना। इस प्रकार कई प्रकार के विशेषणों के देखने से अबयव की सत्ता प्रमाण से परिमित नहीं होता। इसका उत्तत महात्मा गौतम जी देते हैं-