सूत्र :न प्रत्यक्षेण यावत्तावदप्युपलम्भात् II2/1/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जितने भाग का प्रत्यक्ष से ज्ञान होगा उतने ज्ञान से ही की सिद्धि हो जायेगी, क्योंकि विपक्षी तो प्रत्यक्ष को नितान्त परिमित कर रहा है, जब उसने एक देश का प्रत्यक्ष होना मान लिया तो उसके पक्ष का खण्डन हो गया। दूसरे यह है कि प्रत्यक्ष के न मानने पर तो अनमान किसी तरह हो ही नहीं सकता, क्योंकि अनुमान का लक्षण यह किया है कि जब प्रत्यक्ष प्रमाण से दो वस्तुओं की व्याप्ति का ज्ञान हो जाये तो उनमें से एक को देखकर दूसरे का अनुमान किया जाता है। यदि प्रत्यक्ष की सत्ता नितान्त नष्ट कर दी जाय तो अनमान की सत्ता उससे प्रथम ही नष्ट हो जायेगी, क्योंकि प्रत्यक्ष अनुमान का कारण है। जब अनुमान के कारण व्याप्ति का ज्ञान ही न होगा, तो उसके कार्य अनुमान की उत्पत्ति किस प्रकार होगी और व्याप्ति ज्ञान केवल प्रत्यक्ष के द्वारा होता है, जब प्रत्यक्ष ही परिमित न होगा तो अनुमान भी न होगा। विपक्षी जिस अनुमान के भरोसे पर प्रत्यक्ष के खण्डन पर तैयार हुआ था, वह अनुमान गुम हो गया।
व्याख्या :
प्रश्न- जबएक वस्तु के एक अवयव का प्रत्यक्ष होता है और बाकी अवयव प्रत्यक्ष नहीं होते और उससे वस्तु के होने का ज्ञान हो जाता है तो इस ज्ञान को प्रत्यक्ष मानें वा अनुमान कहें, इसका उत्तर गौतम जी अगले सूत्र में देते हैं-