सूत्र :तैश्चापदेशो ज्ञानविशेषाणाम् II2/1/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्यक्ष ज्ञान के इन्द्रियों के कारण से उत्पन्न होने का प्रमाण है। यह विशषेता भी है जो इन्द्रियों के कारण से होती है तथा किसी वस्तु के सुगधित और दुर्गन्धित होने का ज्ञान नासिका से सूँघने पर प्राप्त होता है। और रूप के अच्छे बुरे का ज्ञान चक्षु द्वारा होता है। आवाज के कड़ी और नरम होने का ज्ञान श्रोत्र के द्वारा होता है और स्वाद का ज्ञान चिहृा द्वारा होता है।
व्याख्या :
इस प्रकार रूप, रस, आवाज, गन्ध, गरम-सर्द इन सबका ज्ञान कई प्रकार के प्रत्यक्ष इन्द्रयों के कारण से होता है। इस वास्ते प्रत्यक्ष ज्ञान में इन्द्रिय और अर्थों का सम्बन्ध ही प्रधान का कारण है। और जैसे ऊपर कथन किया गया है, कि प्रायः इन्द्रिय और अर्थ का सम्बन्ध ही ज्ञान का कारण होता है आत्मा और मन का सम्बन्ध ज्ञान का कारण नहीं होता। इस वास्ते समझकर इन्द्रिय औश्र अर्थ का सम्बन्ध ही लक्षण में कथन किया गया। इस पर विपक्षी और हेतु देता है।