DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :ज्ञानलिङ्गत्वादात्मनो नानवरोधः II2/1/23
सूत्र संख्या :23

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : चूँकि आत्मा का लिंग ज्ञान है इस वास्ते प्रत्येक ज्ञान के प्राप्त करने में दिशा आदि अज्ञानवान् वस्तुओं को कारण मानका आवश्यक नहीं और उनके न कहने से कोई हानि नहीं है। इसलिए दिशा काल के साथ आत्मा का संयोग ज्ञान के कार्यों में ठीक नहीं, क्योंकि आत्मा ज्ञान के साथ नित्य सम्बन्ध रखता है। और ज्ञान क्योंकि आत्मा ही को होता है, इस वास्ते उसके न बयान करने में कोई हानि नहीं, क्योकि ऐसे कारण जिनका सम्बन्ध कभी हो हो कभी न हो हो बतलाने आवश्यक हैं, क्योंकि उनके होने से काम का होना और न होने से न होना सम्भव है। और जिसके साथ नित्य सम्बन्ध हो उसके न बयान करने से कोई हानि नहीं प्रतीत होती हैं क्योंकि उसका ज्ञान स्वयमेव सम्बन्ध हो जाता है और उपदेश केवल ज्ञान के लिए किया जाता है। जहां बिना उपदेश के ज्ञान हो जाये वहां उपदेश की क्या आवश्यकता है। इसलिए प्रत्यक्ष के लक्षण में आत्मा के न ग्रहण करने से कोई हानि नहीं। प्रश्न- आत्मा के न बयान करने का पक्ष तो आपने आत्मा का लिंग ही ज्ञान होने से दूर कर दिया, मन के न बयान करने का दोष तो शेष है।

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