सूत्र :तद्विनिवृत्तेर्वा प्रमाण-सिद्धिवत्प्रमेयसिद्धिः II2/1/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि प्रमाण को बिना प्रमाण सत्य मान लोगे और उसकी सिद्धि को किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नही मानोगे, तो तुम्हारे इस सिद्धान्त का खण्डन हो जाने से, कि बिना प्रमाण की कोई वस्तु परिमित नही हो सकती प्रमेय का परिमित होना भी बिना प्रमाण के ही मानना पड़ेगा और जब प्रमेय बिना प्रमाण के परिमित हो गया तो कुल प्रमानों की सत्ता न रहने से उनका खण्डन हो जावेगा क्योंकि प्रमेय के परिमित करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता थी।
व्याख्या :
सिद्धान्त यह था, कि बिना प्रमाण किसी का ज्ञान होना असम्भव है। जब यह सिद्धान्त प्रमाण की सिद्धि, बिना प्रमाण के होने से नष्ट हो गया, तो कुल प्रमाणों का स्वयमेव खण्डन हो गया। अब इसके खण्डन की कोई आवश्यकता न रही। अब इस पर महात्मा गौतम जी सिद्धान्त सूत्र लिखकर इसको पूरा करते हैं।