सूत्र :पूर्वं हि प्रमाणसिद्धौ नेन्द्रियार्थसंनिकर्षात्प्रत्यक्षोत्पत्तिः II2/1/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ - यदि प्रत्यक्ष प्रमाण का ज्ञान प्रमेय ज्ञान से यह लेंगे तो इन्द्रिय और अर्थ अर्थात् वस्तु के विषय से प्रत्यक्ष ज्ञान पैदा नहीं हुआ, क्योंकि उसको प्रमेय ज्ञान से पूर्व माना गया है। और जो इन्द्रियार्थ योग से उत्पन्न न हा। वह प्रत्यक्ष कहला ही नहीं सकता। अतः प्रत्यक्ष का लक्षण यही है कि वह इन्द्रियार्थ के संयोग से पैदा हो, जब प्रत्यक्ष के लक्षण में उसका आना सम्भव नहीं तो उसे प्रत्यक्ष कहना परस्पर विरुद्ध है। क्योंकि यह नियम है कि प्रत्येक वस्तु की सत्ता लक्षण और प्रमाण से ही मानी जाती है। केवल कथन मात्र से किसी वस्तु की सत्ता का परिमित होना असम्भव है। अब प्रत्यक्ष का जो लक्षण आपने कथन किया है, यह प्रमेय ज्ञान से प्रथम उपस्थित होने वाले ज्ञान में नहीं घट सकता। अतएव प्रमेय ज्ञान से पूर्व तो प्रत्यक्ष प्रमाण होना असम्भव है।
प्रश्न - यदि यह माना जावे कि प्रमेय के ज्ञान होने के पश्चात् प्रत्यक्ष का ज्ञान होता है तो इसमें क्या हानि हैं ?